नेशन डायलॉग। नैनीताल हाई कोर्ट ने गुरुवार को चारधाम यात्रा पर लगी रोक हटा दी। इसके साथ ही कोर्ट ने श्रद्धालुओं के लिए कोई कोविड-19 प्रोटोकॉल्स का पालन करना अनिवार्य कर दिया है। हाई कोर्ट ने यह रोक उत्तराखंड सरकार के उस फैसले के कुछ दिनों के बाद हटाई है, जब सरकार कोर्ट के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट पहुंची थी।
हाई कोर्ट ने कोविड-19 की संभावित तीसरी लहर से निपटने के लिए राज्य सरकार की तैयारियों पर असंतोष व्यक्त किया था और इसलिए चमोली, रुद्रप्रयाग और उत्तरकाशी के निवासियों के लिए यात्रा खोलने के राज्य कैबिनेट के फैसले पर रोक लगा दी थी। यह यात्रा एक जुलाई से शुरू होने वाली थी। कैबिनेट ने उन जिलों के लोगों के लिए यात्रा खोलने का फैसला किया था, जहां पर प्रसिद्ध चार मंदिर स्थित हैं। सरकार ने उस समय आटीपीसीआर रिपोर्ट, कोविड प्रोटोकॉल्स का पालन करने आदि को जरूरी कर दिया था।
रोजाना कितने श्रद्धालुओं को मिली अनुमति?
अब हाई कोर्ट के फैसले के बाद श्रद्धालुओं को कई प्रोटोकॉल्स का पालन करना होगा। इसमें कोविड-19 निगेटिव टेस्ट रिपोर्ट, डबल वैक्सीनेशन सर्टिफिकेट, केदारनाथ धाम में एक दिन में सिर्फ 800 श्रद्धालुओं को अनुमति, बदरीनाथ धाम में एक दिन में 1200 श्रद्धालुओं की अनुमति, गंगोत्री में 600, यमुनोत्री धाम में 400 श्रद्धालुओं की अनुमति आदि शामिल हैं। बता दें कि पिछले साल जब यात्रा की अनुमति दी गई थी, तब गंगोत्री में रोजाना औसतन 70, यमनोत्री में 40, केदारनाथ में 180 और बदरीनाथ धाम में 400 श्रद्धालुओं ने पूजा-अर्चना की थी।
कांग्रेस से लेकर साधु-संतों तक ने की थी यात्रा शुरू करने की मांग
चारधाम यात्रा को लेकर बद्रीनाथ धाम में साधु-संतों ने सरकार के खिलाफ अनशन शुरू किया था। यह अनशन 14 दिनों के लिए शुरू किया गया, जिसमें मंदिर दर्शन और चारधाम यात्रा की शुरुआत की मांग की जा रही थी। इसके अलावा, कांग्रेस भी राज्य सरकार पर यात्रा को लेकर हमलावर हो गई थी। कांग्रेस कार्यकर्ताओं ने हाल ही में बद्रीनाथ कूच किया था जिन्हें चमोली पुलिस ने रोक लिया था। पार्टी ने विधानसभा के बाहर भी यात्रा की शुरुआत को लेकर धरना दिया। कांग्रेस नेता गणेश गोदियाल ने आरोप लगाया था कि सरकार कोर्ट में अपना पक्ष सही तरीके से नहीं रख रही है।