उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री और समाजवादी पार्टी के संरक्षक मुलायम सिंह यादव का 82 वर्ष की उम्र में निधन हो गया। मुलायम सिंह जहां उत्तर प्रदेश के नेता जी के नाम से जाने जाते हैं, वहीं उत्तर प्रदेश से पृथक होकर बने उत्तराखंड राज्य के लोगों के लिए मुलायम सिंह की छवि हमेशा के लिए विरोधी नेता की इमेज बनकर रह गई। यही वजह है कि मुलायम सिंह और समाजवादी पार्टी उत्तराखंड में कभी अपना जनाधार नहीं बना पाए।
मुलायम सिंह उत्तर प्रदेश की राजनीति के पुरोधा माने जाते हैं। समाजवादी पार्टी के संरक्षक मुलायम उत्तर प्रदेश ही नहीं पूरे देश की राजनीति में अहम भूमिका निभा चुके हैं। लेकिन उत्तर प्रदेश से पृथक होकर बने उत्तराखंड के लिए मुलायम कभी नेता जी नहीं बन पाए। 1994 में जब मुलायम सिंह उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री थे तब उत्तराखंड राज्य की मांग को लेकर सड़कों पर उतरे लोगों के साथ ऐसी घटना हुई जो कि प्रदेश के लोगों के लिए काला अध्याय बनकर रह गया।
- मुजफ्फरनगर के रामपुर तिराहे पर 1 अक्टूबर की रात और 2 अक्टूबर 1994 के दिन में ऐसी घटना हुई जिसे इतिहास में काले अध्याय के रूप में हमेशा याद किया जाएगा। उत्तराखंड के लोग पृथक राज्य की मांग को लेकर सड़कों पर उतरे हुए थे। अपनी पृथक राज्य की मांग को लेकर दिल्ली तक ले जाने के लिए 1 अक्टूबर को पहाड़ी इलाकों से 24 बसों में सवार होकर कुछ आंदोलनकारी दिल्ली के लिए रवाना हुए। पहले इनको रुड़की के नारसन बॉर्डर पर रोका गया, लेकिन लोग आगे बढ़ते रहे।
1 अक्टूबर 1994 को मुजफ्फरनगर के रामपुर तिराहे पर दोलनकारियों और पुलिस में कहासुनी हुई कि तभी अचानक नारेबाजी और पथराव शुरू हो गया। इस पथराव में तत्कालीन डीएम अनंत कुमार सिंह घायल हो गए। इसके बाद यूपी पुलिस ने क्रूरता से लाठीचार्ज किया और करीब ढाई सौ आंदोलनकारियों को हिरासत में ले लिया गया। इसी झड़प के बीच कथित तौर पर पुलिस पर महिलाओं के साथ छेड़खानी और रेप के भी आरोप लगे, जिनमें बाद में कई सालों तक मुकदमा भी चला।
देर रात तीन बजे के करीब 40 बसों से आंदोलनकारी रामपुर तिराहे पर पहुंचे तो फिर झड़प हुई। 2 अक्टूबर 1994 के दिन में यूपी पुलिस ने करीब 24 राउंड फायरिंग की जिसमें 7 लोगों की जान चली गई और डेढ़ दर्जन लोग घायल हो गए। इसके बाद उत्तराखंड राज्य की मांग को लेकर लोगों का गुस्सा पहले से ज्यादा उग्र हो गया। 9 नवंबर 2000 को उत्तर प्रदेश से अलग राज्य उत्तराखंड बना। इस रामपुर तिराहा कांड में कई पुलिसकर्मियों और प्रशासनिक अधिकारियों पर एफआईआर दर्ज हुई और फिर 1995 में इलाहाबाद हाई कोर्ट ने सीबीआई जांच के आदेश दिए।